भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र में बने कथित राम सेतु ब्रिज को आप बखूबी जानते होंगे। इस रामसेतु का जिक्र पौराणिक कथाओं में भी मिलता हैं। लेकिन मोदी सरकार ने संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में स्पष्ट कर दिया कि इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। जिसके बाद से कांग्रेस मोदी सरकार पर हमलावर है। आखिर रामसेतु को लेकर विवाद क्यों छिड़ा हुआ है?आज आपको राम सेतु विवाद की पूरी कहानी बताएंगे बताएंगे कि डॉ मनमोहन सिंह की सरकार से शुरू हुआ विवाद अब तक चर्चा का विषय क्यों बना हुआ है?दरअसल, संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है। सत्र के दौरान राज्यसभा में हरियाणा से सांसद कार्तिकेय शर्मा ने रामसेतु से जुड़ा एक सवाल पूछा जिसके जवाब में स्पेस मिनिस्टर जितेंद्र सिंह ने कहा- जिस जगह पर पौराणिक राम सेतु होने का अनुमान जाहिर किया जाता है, वहां की सैटेलाइट तस्वीरें ली गई हैंछिछले पानी में आइलैंड और चूना पत्थर दिखाई दे रहे हैं, पर यह दावा नहीं कर सकते हैं कि यही राम सेतु के अवशेष हैं।सरकार के जवाब से स्पष्ट हो गया कि पौराणिक कथा में जिस रामसेतु का जिक्र किया गया इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है।वहीं सरकार के इस जवाब पर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने ट्वीट करते हुए लिखा,”सभी भक्त जन कान खोल कर सुन लो और आँखें खोल कर देख लो। मोदी सरकार संसद में कह रही है कि रामसेतु होने का कोई प्रमाण नहीं है।”
रामसेतु का पौराणिक कथाओं में जिक्र है। रामायण में लिखा है कि भगवान राम ने लंका में रावण की कैद से अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए वानर सेना की मदद से राम सेतु का निर्माण किया था। इसे लेकर साल 2005 में विवाद उठा, जब डॉ मनमोहन सरकार ने 12 मीटर गहरे और 300 मीटर चौड़े चैनल वाले सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी गई। इसके तहत मन्नार की खाड़ी को पाक बे से जोड़ा जाना था लेकिन इसके लिए ‘रामसेतु’ की चट्टानों को तोड़ना पड़ता। इससे जहाज़ों के ईंधन और समय में लगभग 36 घंटे की बचत होती क्योंकि अभी जहाज़ों को श्रीलंका की परिक्रमा करके जाना होता । हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया और कहा कि इस प्रोजेक्ट से ‘रामसेतु’ को नुकसान पहुंचेगा।
बहरहाल, उस वक्त कांग्रेस सरकार के इस प्रोजेक्ट का जमकर विरोध हुआ।विरोध इतना हुआ कि, मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई. बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची जहां केंद्र की कांग्रेस सरकार ने याचिका में कहा कि रामायण में जिन बातों का ज़िक्र है उसके वैज्ञानिक सबूत नहीं हैं। इसके बाद साल 2021 में मोदी सरकार ने इससे जुड़े सबूत जुटाने के लिए शोध की अनुमति दी। तीन साल के इस शोध का उद्देश्य से पता करना था कि राम सेतु मानव निर्मित है या नहीं और इसके बनने का वक्त क्या रामायण के दौर से मिलता है। मोदी सरकार ने संसद में रामसेतु को लेकर जो जवाब दिया ठीक वही जवाब मनमोहन सरकार ने उस वक्त बीजेपी द्वारा किए गए विरोध के जवाब में दिया था। बता दें कि सबसे पहले नासा ने 1993 में रामसेतु की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की थीं इसमें इसे मानव निर्मित पुल बताया गया था।