कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 2012 में छावला सामूहिक दुष्कर्म का शिकार हुई पीड़िता के लिए इंसाफ की मांग के समर्थन में निकाले गए कैंडल मार्च में हिस्सा लिया।
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली के छावला क्षेत्र में 19 वर्षीय युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में निचली अदालत से मृत्यु दंड की सजा पाने वाले तीन आरोपियों को बरी कर दिया था। उत्तराखंड के पौड़ी जिले की रहने वाली युवती गुरुग्राम साइबर सिटी में काम करती थी। वर्ष 2014 में निचली अदालत ने मामले को ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ करार देते हुए तीनों आरोपियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के इस फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी सही ठहराया था। यहां घंटा घर के निकट मार्च निकाले जाने के दौरान रावत ने सवाल उठाया कि आखिर किसी ने तो युवती की हत्या की होगी। उन्होंने युवती के लिए इंसाफ और उसके हत्यारों के लिए मौत की सजा की मांग की। इस कैंडल मार्च के दौरान रावत के साथ उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष गणेश गोदियाल सहित कई वरिष्ठ नेता शामिल रहे।
वहीं इससे पहले, एक सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने युवती की मौत के लिए 25 लाख रुपए का मुआवजा और उसके किसी परिजन के लिए सरकारी नौकरी की मांग की थी। उन्होंने कहा कि हाल में अंकिता भंडारी हत्याकांड में राज्य सरकार ने उसके परिवार को 25 लाख रू की सहायता दी है और उसके भाई को नौकरी देने की बात की है, वहीं सहायता इस युवती के परिवार को भी दी जानी चाहिए।
बता दें कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल में कहा था कि उन्होंने केंद्रीय कानून मंत्री किरन रीजीजू से मामले के संबंध में बात की थी। उन्होंने कहा था, ‘उत्तराखंड की बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए हम सब कुछ करेंगे।’