रेलवे की 29 एकड़ भूमि से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले पर उच्चतम न्यायालय की रोक के आदेश से हल्द्वानी जिले के बनभूलपुरा के उन लोगों को बड़ी राहत मिली है, जिन्हें अपना घर ढहाये जाने का डर सता रहा था।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार एवं रेलवे को नोटिस भेजकर मामले में जवाब दाखिल करने को कहा है । उच्चतम न्यायालय के स्थगनादेश के बाद बनभूलपुरा के रहने वाले एक व्यक्ति ने कहा, ‘‘हम शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं। मामले में राजनीति की जा रही थी, जो गलत है।” शीर्ष अदालत मामले की अगली सुनवाई सात फरवरी को करेगी। शहर में रेलवे स्टेशन के निकट इस क्षेत्र के रहने वाले एक अन्य निवासी ने कहा, ‘‘हम उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं। हमारे पास दस्तावेज हैं। बनभूलपुरा, शेष हल्द्वानी की तरह ‘नजूल’ भूमि पर स्थित है। अगर आप हमें हटाते हैं, तो आपको पूरे हल्द्वानी को हटाना होगा। हमारे साथ यह भेदभाव क्यों?” इससे पहले स्थानीय लोगों ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली अपनी याचिकाओं पर सुनवाई से पहले यहां एक मस्जिद के सामने धरना दिया और नमाज अदा की। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर को बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की 29 एकड़ जमीन से ‘अतिक्रमण’ हटाने और इसे खाली करने के लिए स्थानीय लोगों को एक सप्ताह का नोटिस देने का निर्देश दिया था। बृहस्पतिवार की सुबह इसके खिलाफ धरना देने वालों में बड़ी संख्या में महिलाएं एवं बच्चे शामिल थे। स्थानीय लोगों ने दावा किया कि उनके पास दस्तावेज हैं जो यह साबित करता है कि इलाके में उनका घर वैध है।
स्थानीय वरिष्ठ निवासी अहमद अली ने कहा, ‘‘पूरी दुनिया के मुसलमान शीर्ष अदालत की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं। लोग यहां 100 से अधिक सालों से रहते आ रहे हैं। उनके पास साक्ष्य एवं दस्तावेज हैं। हमें उम्मीद है कि शीर्ष अदालत न्याय करेगी और ऐसा आदेश देगी जो हमारे अनुकूल होगा।” एक अन्य निवासी नईम ने दावा किया कि उनके पूर्वज पिछले 200 सालों से यहां रहते आ रहे हैं। जिले के मंगलौर से कांग्रेस के पूर्व विधायक और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव काजी निजामुद्दीन ने कहा, ‘‘इलाके में दो इंटर कॉलेज, विद्यालय, अस्पताल, पानी टंकी और 1970 में बिछाई गई सीवर लाइन भी है। यहां एक मंदिर और एक मस्जिद भी है।”