कजाखस्तान अपने इतिहास की सबसे बड़ी अशांति का सामना कर रहा है. सोवियत संघ के बाद के दौर में रूस के बड़े सहयोगियों में शामिल यह देश बीते दशकों में स्थिर रहा है. तो आखिर अब ऐसा क्या हो गया?रविवार को पश्चिमी कजाखस्तान के झनाओजेन शहर में सैकड़ों लोग एलपीजी की ऊंची कीमतों का विरोध करने सड़कों पर उतरे. एलपीजी को यहां ऑटोगैस के नाम से भी जाना जाता है, जो यहां का प्रमुख ईंधन है. इसके बाद से विरोध की यह लहर पूरे देश में फैल गई और जहां तहां हजारों लोग सड़कों पर उतर कर विरोध में शामिल हो गए. प्रदर्शनकारी अलमाटी में भी सड़कों पर उतरे जो पहले यहां की राजधानी हुआ करता था और वहां राष्ट्रपति भवन को आग लगा दी गई
इसके साथ ही म्युनिसिपल्टी की इमारतों, पुलिस की गाड़ियों को आग लगाने और हथियारबंद पुलिस अधिकारियों के गश्त, गोलीबारी और धमाकों की भी खबरें आ रही हैं. एक चौंकाने वाली बात यह हुई कि राष्ट्रपति कासिम जोमार्ट तोकायेव ने बुधवार को उन मुद्दों का हल करने के लिए कदम उठाने की घोषणा की है जिनकी वजह से अशांति फैली है. दूसरी तरफ कार्यकारी सरकार ने इस्तीफा दे दिया है और राष्ट्रपति ने देश के सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में आपातकाल का एलान कर दिया है
जमीनी हालात भले ही अभी साफ नहीं लेकिन एक बात जरूर है कि लंबे समय से निरंकुश सरकार के साये में स्थिर रहने वाला कजाखस्तान इतने बड़े राजनीतिक संकट में इससे पहले कभी नहीं फंसा. इसके नतीजे काफी बड़े हो सकते हैं. आखिरकार यह सोवियत संघ का पूर्व सदस्य देश है और रूस के साथ करीबी संबंध बनाए हुए है. बढ़ती कीमतें और जरूरी चीजों की कमी हाल में झानाओजेन से जो विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ है उसकी नींव 10 साल पहले पड़ी थी. तब तेल कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे.